जैन साहित्य >> जैन सिद्धान्त जैन सिद्धान्तकैलाशचन्द्र शास्त्री
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जैन धर्म-दर्शन का क्षेत्र जितना अधिक विस्तृत है उससे कहीं अधिक गम्भीर भी है.....
जैन धर्म-दर्शन का क्षेत्र जितना अधिक विस्तृत है उससे कहीं अधिक गम्भीर भी है. इसमें एक ओर जहाँ गुणस्थान, जीवसमास, मार्गणा, आदि विविध विषयों की विवेचना करनेवाले 'कसायपाहुड, महाबन्ध, गोम्मटसार' जैसे सिद्धान्त-ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है तो दूसरी ओर शुद्ध चैतन्य रूप आत्मद्रव्य की व्याख्या करनेवाले 'समयसार, प्रवचनसार' आदि अध्यात्म-ग्रन्थों की भी रचना हुई है.
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